राष्ट्रिय गणित दिवस। रामानुजन जयंती। नेशनल मैथमेटिक्स डे।

राष्ट्रिय गणित दिवस
२२ दिसंबर, राष्ट्रीय गणित दिवस कि वार्षिक छुट्टी

भारत सरकार ने 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया।भारत के 14वें और तात्कालिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 26 फरवरी 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (22 दिसंबर 1887- 26 अप्रैल 1920) के जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के समारोह के उद्घाटन समारोह के दौरान 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाए जाने कि घोषणा की। इस अवसर पर सिंह ने यह भी घोषणा की कि 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष के रूप में मनाया जाएगा।

2012 का भारतीय डाक टिकट राष्ट्रीय गणित दिवस और रामानुजन की विशेषता के लिए समर्पित है
तब से, हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस कलों और विश्वविद्यालयों में कई शैक्षिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।

रामानुजन का जीवन काफी कठिनाइयों से भरा रहा इसके बावजूद उन्होंने गणित को अपना बहुमूल्य योगदान दिया, उनके द्वारा दी गई थ्योरम और सिद्धांतो को लेकर आज भी वैज्ञानिक चक्कर खा जाते है।

मानवता के विकास में गणित के महत्व और विद्यार्थियों के भीतर बैठे इसके भय को भगाकर इसके प्रति रूचि जगाने के मकसद से नेशनल मैथमेटिक्स डे मनाते है।

यह देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरीको से मनाया जाता है, इस दिन स्कूलों, कॉलेजो और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न प्रतियोगिताओ और गणितीय प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाता है।

पढ़ाई-लिखाई: स्कूल के शुरुआती दिनों में जब उनका स्कूल में दाखिला कराया गया तो उनका मन इस पारंपरिक शिक्षा में नहीं लगा, परंतु जब वह 10 वर्ष के थे, तब उन्होंने पूरे जिला में अपनी प्राइमरी परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए।

गणित में रुचि: आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया जहां उन्होंने अपने स्कूल के समय में ही कॉलेज के लेवल के गणित का अध्ययन कर लिया था, हाईस्कूल में गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक प्राप्त होने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति का लाभ और आगे की शिक्षा के लिए कॉलेज में एडमिशन भी मिला।आगे की शिक्षा के लिए कॉलेज में एडमिशन भी मिला। उनकी बचपन से ही गणित में गहरी रुचि थी, उन्होंने 12 साल की उम्र में ही त्रिकोणमिति (Trigonometry) में महारत हासिल कर ली थी। विकिपीडिया के मुताबिक उन्होंने अपने जीवन में गणित के लगभग 3884 थ्योरम की गद्यावली की जिसमें से ज्यादातर प्रमेय सही साबित की जा चुकी हैं, उन्होंने गणित को खुद ही सीखा था।

परीक्षा में फेल: लेकिन परेशानी तब शुरू हुई जब वह अपने गणित प्रेम के कारण 11वीं की गणित के परीक्षा को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए, जिससे उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी भी बंद हो गई, इसके बाद उन्होंने 1960 में दोबारा 12वी की प्राइवेट परीक्षा दी और फिर से फ़ैल हो गए।

इंग्लैंड यात्रा और शोधः प्रोफेसर हार्डी उस समय विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक गिने जाते थे, रामानुज ने प्रोफेसर जी. एच. हार्डी के शोध कार्यों को पढ़ा और उनके एक अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर भी खोज निकाला। जिसके परिणामस्वरूप प्रोफेसर हार्डी ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। परंतु धन की कमी और कुछ व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। लेकिन बाद में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से शोधवृत्ति मिलने के बाद और प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आर्थिक सहायता मिली। 

लंदन में रामानुजन: जब वे लंदन पहुंचे तो उन्होंने इंग्लैंड के महान गणितज्ञ प्रोफ़ेसर जी.एच. हार्डी के साथ मिलकर कई शोध पत्र प्रकाशित किए, जिसके बाद उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय से B.A. की डिग्री भी मिल गई परंतु वहां के रहन-सहन और खान-पान के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। सन 1918 में रामानुजन को इंग्लैंड की प्रसिद्ध संस्था ‘रॉयल सोसाइटी’ का फेलो नामित किया गया। वे रॉयल सोसाइटी के इतिहास में सबसे कम आयु में सदस्यता पाने वाले व्यक्ति है। इतना ही नहीं रामानुजन ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी है।

अंतिम समय और मृत्यु: लन्दन से भारत लौटने के बाद उनका स्वास्थ्य ज्यादा ही गंभीर हो गया, वे क्षय रोग से ग्रसित थे, उस समय इसका कोई इलाज नही था।

ऐसे में लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते उन्होंने 33 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को अपने प्राण त्याग दिए, जो गणित जगत और भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। 

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