प्राथमिक कक्षाओं में बहुभाषी शिक्षण :- NISHTHA FLN (3.0)

प्राथमिक कक्षाओं में बहुभाषी शिक्षण

इस मॉड्यूल से क्या नया सीखा?

  • जिन क्षेत्रों में बच्चों की भाषा को शिक्षण का माध्यम नहीं बनाया जा सकता वहां बच्चों की भाषा का कार्य नैतिक तौर पर मौखिक प्रयोग करना चाहिए।
  • किसी भी एक भाषा का प्रभुत्व ना होना।
  • L1 बच्चों की समझ की भाषा।
  • L2 मौखिक विकास पर जोर।
  • वारली पेंटर कहानी का उद्देश्य आवश्यकतानुसार एक से अधिक भाषा का प्रयोग करना।

मैंने जो सीखा उसे अपनी शाला में इस प्रकार लागू करूंगा?

  • बच्चों के परिवेश की भाषा का उपयोग कर उसको ज्यादा भागीदारी के अवसर प्रदान करूंगा अधिक से अधिक संवाद के अवसर प्रदान कर शिक्षण कार्य को सशक्त बनाऊंगा।
  • परिवेश में बोली जाने वाली भाषाओं जिनका वे  उपयोग करते हैं उससे शिक्षण की भाषा बनाकर भयमुक्त आनंदमई वातावरण में शिक्षण, साथ ही परिवेश खेलो गीतों के माध्यम से शिक्षण में रोचकता लाऊंगा।
  • L1 भाषा पर विशेष ध्यान खेलो एवं गीतों के माध्यम से दूंगा।
  • L2 सुनने और बोलने की रोचक और मजेदार अवसर, भयमुक्त वातावरण प्रदान कर शब्द भंडार बढ़ाऊंगा।
  • शिक्षण को रोचक व आनंदमई बनाने के लिए एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करूंगा।

प्राथमिक कक्षाओं में बहुभाषी शिक्षण

उद्देश्य:-

  1. हमारे देश की बहुभाषिकता का वर्णन कर सकेंगे।
  2. बच्चों के संदर्भ में भाषा संबंधी परिस्थिति का विश्लेषण कर सकेंगे।
  3. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बच्चों की परिचित भाषा के इस्तेमाल का महत्व बता सकेंगे।
  4. बहुभाषी शिक्षण की अवधारणा और महत्व बता सकेंगे।
  5. शिक्षण में बच्चों की भाषा के इस्तेमाल की कुछ रणनीति बता सकेंगे।
  6. दूसरी भाषा सिखाने के कुछ कारगर तरीकों की व्याख्या कर सकेंगे।

रूपरेखा:-

  • हमारे देश में भाषाओं का तान बान
  • बच्चों पर भाषा संबंधी अंतर का दुष्प्रभाव।
  • शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बच्चों की परिचित भाषा का महत्व
  • बच्चों की मातृभाषा के प्रयोग हेतु प्रावधान
  • बहुभाषी शिक्षण – अर्थ और महत्व
  • बालवाटिका में बहुभाषी शिक्षण
  • बहुभाषी शिक्षण की रणनीतियां

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और बहुभाषी शिक्षण

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बुनियादी साक्षरता एक संख्या ज्ञान पर विशेष जोर दिया है।भारत सरकार ने एक मिशन की शुरुआत की निपुण भारत इसके अंतर्गत हम सब को यह सुनिश्चित करना है कि कक्षा तीन तक देश का हर वर्ग बच्चा बुनियादी कौशलों को हासिल कर सके।

इसको हासिल करने में कई चुनौतियां हैं सबसे बड़ी चुनौती भाषा की – 35% बच्चे प्राथमिक कक्षाओं में ऐसी भाषा के माध्यम से सीख रहे हैं जो उनके लिए परिचित नहीं है।

NEP और निपुण भारत दोनों में ही F.L.N. के लक्ष्यों को प्राप्त यानि बहुभाषी शिक्षण पर विशेष जोर दिया है  NEP 2020 में स्पष्ट कहा गया है कि बच्चे के घर की भाषा और स्कूल की भाषा में जो अंतर है उसके बीच सेतु बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। निपुण भारत में भी शैक्षिक रूप से कहा गया है कि बच्चे की मातृभाषा का उपयोग FLN के उद्देश्य प्राप्त करने के लिए एक बुनियादी शर्त है।
भाषा सभी को सीखने का आधार है बच्चे किसी बात को ध्यानपूर्वक सुनते समझते तर्क और निष्कर्ष निकालने जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं यह सभी काम भाषा के माध्यम से होते हैं। कई शोध हमें यह बताते हैं कि बच्चों के घर की भाषा उनकी परिचित भाषा से सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में बच्चों की सक्रिय भागीदारी बढ़ती है। वे अन्य विषयों में बेहतर सीख पाते हैं और उनका अपने आप में विश्वास बढ़ता है। घर की भाषा की मजबूत बुनियाद अन्य भाषाओं के अच्छे विकास में भी सहायक होती हैं।
बच्चों की भाषा को सीखने सिखाने की प्रक्रिया में जोड़ने के अन्य तरीके भी हैं-

  1. भाषाओं की रणनीति तरीके से पूरी योजना के साथ मौलिक काम में सम्मिलित करना।
  2. अपरिचित भाषा सिखाने की रणनीतियों का उपयोग।
  3. बच्चे की घर की भाषा राज्य की भाषा और अंग्रेजी सीखना इन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।
  4. बहुभाषी शिक्षण का सही अर्थ है- बच्चों की भाषा स्कूल राज्य की भाषा और अंग्रेजी को साथ लेकर चलना।बच्चों को अन्य भाषा सिखाना चाहते हैं तो उसकी शुरुआत घर की भाषा की मजबूत में के आधार पर होना चाहिए।

“मेरी शिक्षा, मेरी परीक्षा, मेरा आकलन, मेरा मूल्यांकन।”

मुझे पढ़ाना मुझे सिखाना जब मैं ही हूं इन सब के बीच में केंद्र में मेरी भाषा क्यों नहीं है बीच में?

2011 की जनगणना के अनुसार देश के 1 चौथाई से अधिक लोग 2 भाषाएं बोलते जबकि 7% लोग 3 भाषाएं बोलते हैं। ज्यादातर लोग उद्देश्य और आवश्यकतानुसार दो या दो से अधिक भाषाओं का उपयोग आसानी से करते हैं।
किसी व्यक्ति समुदाय द्वारा दो या अधिक भाषाओं का प्रयोग बहुभाषिकता है। यह बहुभाषिकता हमारे भारतीय जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

लिंक या संपर्क भाषा

जब किसी क्षेत्र में अलग-अलग भाषा संबंधी समुदाय के लोग साथ मिलजुल कर रहते हैं तो वे आपसी व्यवहार और कामकाज के लिए किसी लिंक या संपर्क भाषा का उपयोग करते हैं। संपर्क भाषा क्षेत्रीय भाषाओं का मिश्रण हो सकती है या तर्क अन्य भाषा हो सकती है।

अपरिचित भाषा और बच्चे की दुविधा

बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा बहुत दृढ तक या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में होती है। प्राथमिक स्कूलों में 25% बच्चे घर और स्कूल की भाषा में अंतर होने के कारण आरंभिक वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं। आरंभिक वर्षों में एक ऐसी भाषा सीखने को मजबूर हो जाते हैं जो वह ना तो बोलते हैं और ना ही समझते हैं इसीलिए बच्चे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सार्थक रूप से नहीं जुड़ पाते और उनके आत्मविश्वास को भी भारी चोट पहुंचती है जिससे शैक्षिक प्रदर्शन नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।
हमें जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे बच्चों की भाषा और स्कूल की भाषा में कितना अंतर है ताकि उसके अनुसार शिक्षण प्रक्रिया को तराशा जा सके।

एक उदाहरण द्वारा कक्षा में बच्चों की भाषा का प्रयोग – क्यों और कैसे

जीवन लाल जी की कक्षा महिमा जी की कक्षा
बच्चों की कोई भागीदारी नहीं। बच्चों की सक्रिय भागीदारी
बच्चों के चेहरे पर ना समझ पाने और डर शिक्षक के भाव बच्चों के चेहरों पर आत्मविश्वास के भाव
उच्च स्तरीय चिंतन कल्पना और अनुमान लगाने की कोई अवसर नहीं कक्षा में उच्च स्तरीय चिंतन कल्पना और अनुमान लगाने के भरपूर अवसर
कक्षा में डर व  झिझक का माहौल कक्षा में प्रेम पूर्ण और सीखने के लिए उत्साह का माहौल
बच्चों का अपने विचारों और भावनाओं को बिल्कुल भी साझा नहीं कर पाना बच्चों का अपने विचारों का भावना को उत्साह के साथ साझा करना
शिक्षक केंद्रित कक्षा। बाल केंद्रित शिक्षा

आरंभिक कक्षा में बच्चों की मातृभाषा के प्रयोग का महत्व

शिक्षा में भाषा ही सबकुछ नहीं है लेकिन भाषा के बिना शिक्षा में सबकुछ कुछ भी नहीं है।

जब बच्चे भाषा सीखते हैं तो वे बहुत सारे विषयों में से सिर्फ एक विषय नहीं सीख रहे होते हैं बल्कि वे सीखने की आधारशिला सीख रहे होते हैं।

  • बच्चों की समझ की भाषा का शिक्षण प्रक्रिया में इस्तेमाल करना अनिवार्य है।
  • घर की भाषा / समझ की भाषा / परिचित भाषा / मातृभाषा / L1 की मदद से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बच्चों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो पाती है और कक्षा बाल केंद्रित बनती है।
  • L1 की मदद से कुछ भी सोचना समझना कल्पना करना उच्चस्तरीय चिंतन का काम करना और खुद को अभिव्यक्त करना आसान हो जाता है।
  • L1‌ की मदद से अनुभव और पूर्व ज्ञान को स्कूल के ज्ञान से जोड़ना सहज होता है।
  • घर की भाषा इस्तेमाल करने से आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है और शिक्षक से उनका रिश्ता अधिक आत्मीय और सहज बन पाता है।बच्चों में ऐसी सकारात्मक भावनाएं उनको शिक्षण प्रक्रिया में बहुत अच्छी तरह से जोड़ती हैं।
  • मातृभाषा में शिक्षण से सभी विषयों में बच्चों की समझ बढ़ती है सीखने का स्तर बेहतर होता है।

बच्चों की भाषा उन्हें दूसरी भाषा सीखने में कैसे मदद करती है?

भाषाए परस्पर एक दूसरे से मिले जुले रूप से विकसित होती हैं। यह मान्यता पूरी तरह गलत है कि बच्चों की घर की भाषा के लिए मस्तिष्क में ज्यादा जगह और कक्षा में समय देने से अन्य भाषाओं के लिए (मस्तिष्क में) जगह कम रह जाती है।
दरअसल भाषा से जुड़े ऐसे बहुत से कौशल हैं जो अलग-अलग भाषाओं में भी एक समान ही होते हैं और यदि वे मात्र भाषा में ठीक प्रकार से विकसित हो जाते हैं तो अन्य भाषाओं पर भी पकड़ बनाएं बहुत मददगार साबित होते हैं।

परिचित भाषा से दूसरी भाषा में स्थानांतरित होने वाले कौशल

1. अवधारणात्मक ज्ञान –

यदि बच्चों ने अपनी भाषा में किसी अवधारणा को सीख लिया है तो उन्हें हिंदी अंग्रेजी में दोबारा सीखा नहीं पड़ता उन्हें केवल नई भाषा में उसे क्या कहते हैं यह जानना भर होता है।

2. पढ़ने लिखने से संबंधित कौशल-

पढ़ने लिखने से संबंधित भी कई ऐसे कौशल हैं जो एक बार ही सीखने पड़ते हैं अलग भाषाओं में बार-बार नहीं। मातृभाषा में इन्हें सीख लेने पर दूसरी भाषा में इन्हें सीखना बहुत सरल हो जाता है।

पढ़ने-लिखने संबंधी कौशल

  1. ध्वनि जागरूकता
  2. ध्वनियों और अक्षरों के संबंध को समझना
  3. विराम चिन्हों की समझ
  4. बाएं से दाएं की और प्रणाम
  5. लेखों या पाठों के विभिन्न प्रकारों की समझ होना
  6. संदर्भ से अनुमान लगाना

उच्च स्तरीय चिंतन कौशल

  • किसी पढ़ी या सुनी हुई कहानी या लेख के मुख्य विचार को बता पाना।
  • किसी पाठ का सारांश बता पाना।
  • पात्रों, वस्तुओं या घटनाओं में समानता और अंतर खोज पाना।
  • किसी विषय पर तर्क वितर्क कर पाना और कारण सहित अपना पक्ष रख पाना।
  1. अवधारणात्मक ज्ञान
  2. पढ़ने लिखने से संबंधित कौशल
  3. उच्च स्तरीय चिंतन कौशल

यह सभी कौशल यदि अपनी मजबूत भाषा में भली प्रकार से सीख लिए जाते हैं तो दूसरी भाषा में सीखने के लिए एक मजबूत नीवं का काम करते हैं क्योंकि दूसरी भाषा के शब्द भले ही अलग हो पर भाषा में भी किसी विषय के बारे में सोचने समझने का तरीका वैसा ही रहता है।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार

  • छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा के माध्यम से बेहतर सीखते हैं।
  • जहां तक संभव हो सके कम से कम पांचवी तक बच्चों की पढ़ाई उनकी भाषा में ही होनी चाहिए।
  • जहां तक संभव हो सके स्थानीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण सामग्री का निर्माण होना चाहिए।
  • कक्षा में बहुभाषी शिक्षण को अपनाते हुए बच्चों के घर की भाषा और स्कूल की भाषा का सोचा समझा प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • बच्चों के पढ़ने लिखने की शुरुआत उनकी अपनी भाषा में होनी चाहिए।

बहुभाषी शिक्षण क्या है?
बहुभाषी शिक्षण में बच्चों की परिचित भाषा को मजबूत आधार बनाकर नई भाषाएं सोचे समझे रूप से सिखाई जाती हैं।
बहुभाषी शिक्षण = बच्चों की मातृभाषा + दूसरी भाषा + तीसरी भाषा

लाभ

  • कक्षा 1 में सीखने सिखाने के लिए खुशनुमा और सहज माहौल बनाना।
  • बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावना पैदा होना।
  • बच्चों के पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ पाना।
  • बेहतर रूप से अन्य भाषाएं सीखना सिखाना।
  • सभी विषयों में बच्चों की समझ और शैक्षणिक परिणाम बेहतर होना।
  • रटन पद्धति के स्थान पर समझ अभिव्यक्ति कल्पना रचनात्मक और उच्चस्तरीय चिंतन पर ध्यान देना।
  • ड्रॉपआउट की दर में कमी होना।
  • स्कूल और समुदाय का आपसी संबंध मजबूत होना।
  • वंचित समुदाय के बच्चों को बेहतर शिक्षा और रोजगार के मौके मिलना।

विशेषताएं

  • कक्षा में किसी एक भाषा का प्रभुत्व ना होना।
  • अपरिचित भाषा सिखाने के लिए मजबूत शिक्षण तकनीकों और बच्चों की भाषा की मदद होना।
  • भाषाओं के अलग-अलग खांचो में ना रख कर उनका मिलाजुला मिश्रित प्रयोग करना।
  • बच्चों की भाषाओं को कक्ष में सम्मानजनक स्थान मिला और शिक्षण प्रक्रिया में भरपूर इस्तेमाल करना।
  • बच्चों के परिवेश अनुभवों पूर्व ज्ञान और संस्कृति को पाठ्य चर्चा में शामिल करना और सीखने सिखाने का आधार बनाना।
  • सभी विषयों के शिक्षण के लिए बहुभाषी शिक्षण पद्धति को अपनाना।

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