भोपाल : सुप्रीम कोर्ट मप्र के कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आगामी तीन सितंबर को फैसला सुना सकता है। इसके पहले 17 अगस्त की तिथि रखी गई थी। लेकिन इस तिथि के पूर्व अटार्नी जनरल की तबियत खराब होने के कारण उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में तिथि आगे बढ़ाने का निवेदन किया था। जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए तीन सितंबर की तिथि तय की है। दरअसल प्रदेश में छह साल से बंद पदोन्नति की प्रक्रिया बंद है। पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गत 28 जनवरी को मुद्दे तय किए थे। इन्हीं मुद्दों को आधार बनाकर केंद्र और राज्यों की सरकार पदोन्नति को लेकर निर्णय लेना था। लेकिन पदोन्नति के संबंध में सरकार कोई निर्णय नहीं ले पाई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी से राज्यवार सुनवाई शुरू हुई। पहले केंद्र सरकार के मामले सुने गए। इसके बाद राज्यों की सुनवाई शुरू की गई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मप्र के संबंध में मांग गए डाटा को सरकार ने जमा कर कर दिया है। जिसके विश्लेषण के बाद प्रदेश के संदर्भ में फैसला आएगा। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में तारीख भी लग चुकी है। पहले यह तारीख 17 अगस्त की लगी थी। लेकिन इस तिथि के पूर्व अटार्नी जनरल की तबियत खराब होने के कारण उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में तिथि आगे बढ़ाने का निवेदन किया था। जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए तीन सितंबर की तिथि तय की है। इस तिथि पर मप्र के संदर्भ में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है।
70 हजार से ज्यादा कर्मचारी सेवा निवृत्त :
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में मप्र लोक सेवा ( पदोन्नति) नियम 2002 खारिज किया है। प्रदेश के कर्मचारी लगभग पौने छह साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। इस अवधि में 70 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें से करीब 32 हजार कर्मचारियों को बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त होना पड़ा है। सरकार ने वर्ष 2018 में कर्मचारियों की सेवा की अवधि दो साल बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। वरना, सेवानिवृत्त होने वालों का आंकड़ा 75 हजार के पार हो जाता।
पदोन्नति को लेकर सरकार को दोहरे मापदंड:
मध्य प्रदेश के कर्मचारियों ने पदोन्नति को लेकर सरकार पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाना शुरू कर दिए है। कर्मचारियों का कहना है कि जब राज्य वन सेवा के अधिकारियों को भारतीय वन सेवा में पदोन्नत किया जा सकता है। डाक्टरों को पदोन्नति दी जा सकती है, तो हमें क्यों नहीं? स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में 451 डाक्टरों को द्वितीय से प्रथम श्रेणी में पदोन्नत किया है। इससे पहले सरकार राज्य वन सेवा, जल संसाधन विभाग में अभियंता, पशुपालन विभाग में डाक्टरों को पदोन्नति दे चुकी है। इसके अलावा पुलिस विभाग में मैदानी कर्मचारियों को वरिष्ठ पद का प्रभार दिया गया है। सिर्फ कर्मचारियों की पदोन्नति को रोके रखा है। मप्र अधिकारी-कर्मचार संयुक्त मोर्चा के संयोजक एसबी सिंह क कहना है कि पदोन्नति के संबंध में सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण है। सरकार को समान नियम बनाकर पदोन्नति करनी चाहिए। अब सुप्रीम फैसले की तारीख हो गई है, तो इसकी सबसे ज्यादा खुशी कर्मचारियों को होगी।
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