चतुर्थः पाठः नीतिश्लोकाः कक्षा 8

चतुर्थः पाठः नीतिश्लोकाः

कक्षा-8

विषय – संस्कृत

नीतिश्लोकेषु नीतिः भवति। जीवनविषये, समाजविषये, राष्ट्रविषये, धर्म-वैराग्य- संस्कार, परोपकारादिविषये प्रामाणिकं, सुचिन्तितं वैज्ञानिकं च चिन्तितं नीतिश्लोकेषु लभ्यते। संस्कृते नीतिम् आश्रित्य श्लोकरचनायाः शतकरचनायाः च परंपरा अतिप्राचीन विद्यते। वस्तुतः अल्पैः शब्दैः महनीयभावानाम् उदात्तविचाराणां श्रेष्ठविषयाणां च महत्वपूर्णं विवरणं नीतिश्लोकेषु।

अर्थ- नीति के श्लोकों में नीति होती है। जीवन के विषय में, समाज के विषय में राष्ट्र के विषय में धर्म, वैराग्य, संस्कार और परोपकार आदि के विषय में प्रामाणिक और चिंतन और वैज्ञानिक चिंतन नीति के श्लोकों में पाया जाता है। संस्कृत में नीति को आधार बनाकर श्लोक रचना करने की और शतक रचना करने की परंपरा अति प्राचीन है। वस्तुतः थोड़े शब्दों के द्वारा प्रतिष्ठित भावों का उदार विचारों का और श्रेष्ठ विषयों का महत्वपूर्ण विवरण नीति के श्लोकों में पाया जाता है।

 

अर्थागमोनित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रोSर्थकरी च विद्दा षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ।।1।।

अर्थ- हे राजन ! नित्य धन का आगम हो, निरोगता हो, पत्नी प्यारी हो और प्रिय बोलने वाली हो, आज्ञा का पालन करने वाला पुत्र हो और धन का संग्रह कराने वाली विद्या हो, ये छह संसार के सुख है।

 

अयुक्तम् स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम्।
अमृतं राहवे मृत्युः विषं शंकरभूषणम् ।।2।।

अर्थ- समर्थ व्यक्ति के लिए अनुचित भी उचित हो जाता है और नीचे स्तर के व्यक्ति के लिए उचित भी अनुचित हो जाता है। जैसे राहु को अमृत पीने से भी मृत्यु मिली और विषपान करना शंकर जी के लिए भूषण हो गया।

 

अमृतं चैव मृत्युश्च द्वयं देहे प्रतिष्ठितम्।
मृत्युमापद्दते मोहात् सत्येनापद्दतेSमृतम् ।।3।।

अर्थ- अमरता और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित है। मोह में फंसे रहने से मृत्यु प्राप्त होती है और सत्य को जानने से अमरता प्राप्त होती है।

 

आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरं धने शुचिम्।
भार्या क्षीणेषु वित्तेषु व्यसनेषु च बान्धवान् ।।4।।

अर्थ- मित्र को आपत्तियों में, शुरूवीर को युद्ध में, पवित्रता को धन में, पत्नी को धन नष्ट हो जाने पर और भाई बहनों को संकटों में जानना चाहिए।

 

आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा।
निपात्यते क्षणैनाधः तथात्मा गुणदोषयोः ।।5।।

अर्थ- जैसे पर्वत पर शीला बहुत ही कठिनाई से चढ़ाई जाती है और एक क्षण में ही नीचे गिरा दी जाती है वैसे ही प्राणी गुण और दोष ग्रहण करता है।

 

उद्दोग नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकम्।
मौने च कलहो नास्ति नास्ति जागरिते भयम् ।।6।।

अर्थ- परिश्रम करने से दरिद्रता नहीं रहती है, भगवान का नाम लेने से पाप नहीं रहते हैं। मौन रहने से लड़ाई झगड़ा नहीं होता है और जागते रहने से भय नहीं होता है।

 

किं छिद्रं को नु संगो मे किं वास्त्यविनिपातितम्।
कुतो ममाश्रयेद् दोषः इति नित्य विचिन्तयेत् ।।7।।

अर्थ- मुझमें क्या बुराई है, क्या आसक्ति है अथवा वह कौन सी वस्तु है जो पतनसील नहीं है। मुझ में दोस्त कहां से आते हैं इनके विषय में सदा सोचना चाहिए।

 

गुणेषु क्रियतां यत्नः किमाटोपैः प्रयोजनम्।
विक्रीयन्ते न घण्टाभिर्गावः क्षीरविवर्जिताः ।।8।।

अर्थ- गुणों के उपार्जन में प्रयास करना चाहिए, बाहरी – आडम्बरों (दिखावों) से क्या लाभ है। क्योंकि घण्टे लटकाने से दूध न देने वाली गायें नहीं बिकती हैं।

 

निर्धनस्य विषं भोगो निस्सत्त्वस्य विषं रणम्।
अनभ्यासे विषं शास्त्रम् अजीर्णे भोजनं विषम् ।।9।।

अर्थ- निर्धन के लिए भोग-विलास विष है, अशक्त। (शक्तिहीन) के लिए युद्ध विष है, अभ्यास न करने के लिए। शास्त्र विष हैं (और) अपच होने पर भोजन विष है।

 

शब्दार्थाः

अर्थागमः = धन का आगमन
अरोगिता = निरोगता
वश्यः = आज्ञापालन
अर्थकरी = धन संग्रह करने वाली
अयुक्तम् = अनुचित, अयोग्य
स्वामिनः = समर्थ जन का
युक्तम् = उचित वस्तु का उपयोगी वस्तु
अमृतम् = अमृत, अमरता
मृत्युमापद्दते = मृत्यु को पता है
आपत्सु = आपत्तियों में
व्यसनेषु = बुरी आदतों में
जानीयात् = जानना चाहिए
आरोप्यते = चढ़ाई जाती है
निपाप्यते = गिराई जाती है
तथात्मा = वैसे ही प्राणी व्यक्ति
अधः = नीचे
उद्दोगे = उद्दम करने पर
दरिद्रता = गरीबी
जपतः = भगवान् का नाम लेने वाले का
कलहः = लड़ाई झगड़ा
छिद्रम् = दुर्बलता, गरीबी, बुराई
संगः = आसक्त
अविनिपातितम् = वह कौन सी वस्तु जो पतनसीन नहीं है।
ममाश्रयेत् = मुझे में आते हैं
विचिन्तयेत् = चिंतन करना चाहिए
गुणेषु = घूम के उपार्जन में
किमाटोपैः = बाहरी आडम्बरों से क्या?
घण्टभिः = घंटे लटकाने से
क्षीरविवर्जिताः = दूध से रहित
भोगः = भोग विलास
निस्सत्वस्य = अश्क्त के लिए
अनभ्यासे = अभ्यास न करने पर
अजीर्णे = अपच में

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-


(क) भार्या कीदृशी भवेत्?
उत्तर- प्रियवादिनी। 


(ख) विद्या कीदृशी भवेत्?
उत्तर- अर्थकरी। (धन का संग्रह करने वाली )


(ग) युक्तं नीचस्य किं भवति?
उत्तर- दूषणम् (अनुचित)


(घ) मनुष्यः मृत्युं कथम् आपद्दते?
उत्तर- मोहात्। (मोह से)


(ङ) मित्रं कदा जानीयात्?
उत्तर- आपत्सु। (आपत्तियों में)

 

प्रश्न 2. एकवाक्येन उत्तरं लिखत-


(क) अजीर्णे विषंकिम्?
उत्तर- अजीर्णे भोजनं विषम्।

(ख) दरिद्रयं कुत्र नास्ति?
उत्तर- दरिद्रयं उद्दोगे नास्ति।

(ग) मानवः नित्यं किं विचिन्तयेत्?
उत्तर- मानवः नित्यं मे किं छिद्रं को नु संगो मे किं अविनिपातितम्।
कुतः दोषः ममाश्रयेद् इति विचिन्तयेत्

(घ) गुणेषु कः करणीयः करणीयम्?
उत्तर- गुणेषु यत्नः करणीयः।

(ङ) अनभ्यासे किं विषम्?
उत्तर- अनभ्यासे शास्त्रम् विषम्।

 

प्रश्न 3. श्लोकांशान् यथायोग्यं योजयत-
(अ)——————————(ब)
क. मृत्युमापद्दते मोहात् – विषं शंकरभूषणम्
ख. गुणेषु क्रियतां यत्नः – सत्येनापद्दतेSमृतम्
ग. अनभ्यासे विषं शास्त्रम् – जपतो नास्ति पातकम्
घ. अमृतं राहवे मृत्युः – किमाटोपैः प्रयोजनम्
ङ. उद्दोग नास्ति दारिद्र्यं – अजीर्णे भोजनं विषम्

उत्तर-
(अ) ……………………………………………… (ब)
क. मृत्युमापद्दते मोहात् – सत्येनापद्दतेSमृतम्
ख. गुणेषु क्रियतां यत्नः – किमाटोपैः प्रयोजनम्
ग. अनभ्यासे विषं शास्त्रम् – अजीर्णे भोजनं विषम्
घ. अमृतं राहवे मृत्युः – विषं शंकरभूषणम्
ङ. उद्दोग नास्ति दारिद्र्यं – जपतो नास्ति पातकम्

 

प्रश्न 4. शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यनां समक्षं ‘न’ इति लिखत-

क. नित्यम् आर्थागमः अरोगिता च इति द्वयं भवेत्। [आम्]
ख. अमृतं विषं च द्वयं देहे प्रतिष्ठितम्। [आम्]
ग. उद्दोगे दारिद्र्यम् अस्ति। [न]
घ. व्यसनेषु बान्धवान् जानीयात्। [आम्]
ङ. सत्येन अमृतम् आपद्दते। [आम्]

 

प्रश्न 5. पदानां विभक्तिं वचनं च लिखत-
क्र. …. पदम् …. शब्दः …. विभक्तिः …. वचनम्
क. …. नीचस्य …. नीचः …. षष्ठी …. एकवचनम्
ख. …. आपत्सु …. आपद् …. सप्तमी …. बहुवचनम्
ग. …. युद्धे…. युद्धम् …. सप्तमी …. एकवचनम्
घ. …. क्षीणेषु…. क्षीणम् …. सप्तमी …. बहुवचनम्
ङ. …. धने…. धनम् …. सप्तमी …. एकवचनम्
च. …. गुणदोषयों…. गुणदोषः …. षष्ठी, सप्तमी …. द्विवचनम्
छ. …. निर्धनस्य…. निर्धनः …. षष्ठी …. एकवचनम्
ज. …. मौने…. मौनम् …. सप्तमी …. एकवचनम्
झ. …. व्यसनेषु…. व्यसनम् …. सप्तमी …. बहुवचनम्
ञ. …. बान्धवान्…. बान्धवः …. द्वितीया …. बहुवचनम्

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